देश से छुआछूत खत्म करने और समाज को सशक्त बनाने में अहम किरदार निभाने वाले महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को पुणे में हुआ था।
आज 11 अप्रैल को महिलाओं, गरीबों, वंचितों, दलितों और शोषित किसानों के उत्थान के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले महान भारतीय विचारक और समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती है।
महात्मा फुले (जोतिराव गोविंदराव फुले ) देश में सामाजिक क्रांति के अग्रदूत थे। 19वीं सदी के जमाने में वे शिक्षा का महत्व जानते थे इसलिए उन्होंने समाज के ताने सहकर और गालियां सुनकर भी अपनी पत्नी को पढ़ाया। सामाजिक जड़ताओं व कुरीतियों को दूर करने के लिए उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी न्योछावर कर दी। उनका पूरा नाम जोतिराव गोविंदराव फुले था। उन्हें ज्योतिबा फुले या महात्मा फुले के नाम से जाना जाता था।
महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल,1827 को पुणे में हुआ था। उनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे आकर फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करने लगा था। माली के काम में लगे ये लोग फुले के नाम से जाने जाते थे। ज्योतिबा फुले का जीवन और उनके विचार व महान कार्य आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बने हुए हैं।
महात्मा ज्योतिबा फुले जयंती पर कई स्कूलों व स्थानों पर कार्यक्रम होते हैं जहां उन्हें श्रद्धांजिल अर्पित की जाती है। स्कूलों में निबंध व भाषण प्रतियोगिताएं भी होती हैं।
आज भारत के महान समाज सुधारक, विचारक, समाजसेवी और क्रान्तिकारी कार्यकर्ता महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती है। उनका जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था। ज्योतिबा फुले जीवन भर भारतीय समाज की सेवा में जुटे रहे। उन्होंने वंचितों, शोषितों व महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए अपना पूरा जीवन अर्पण कर दिया। ऐसे युग पुरुष को उनकी जयंती पर मैं श्रद्धांजलि देता हूं।
जब ज्योतिबा फुले सिर्फ एक साल के थे तब उनकी माता का निधन हो गया। पढ़ाई बीच में छूट गई थी। फिर बाद बाद में 21 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी की सातवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की।
साथियों, 19वीं सदी के भारतीय समाज में जात-पात, बाल विवाह समेत कई कुरीतियां व्याप्त थीं। महिलाओं और दलितों की स्थिति बेहद खराब थी। महात्मा फुले ने भारतीय समाज की इन कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। वह बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे। वह अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर महिलाओं का शिक्षा का अधिकार दिलाने के लिए लड़े। वह और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले भारत में महिला शिक्षा के अग्रदूत थे।
फुले महिलाओं को स्त्री-पुरुष भेदभाव से बचाना चाहते थे। इसके लिए स्त्रियों को शिक्षित करना बेहद आवश्यक था। उन्होंने अपनी पत्नी में पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी देखकर उन्हें पढ़ाने का मन बनाया और प्रोत्साहित किया। सावित्रीबाई ने अहमदनगर और पुणे में टीचर की ट्रेनिंग ली। उन्होंने साल 1848 में पुणे में लड़कियों के लिए देश का पहला महिला स्कूल खोला। इस स्कूल में उनकी पत्नी सावित्रीबाई पहली शिक्षिका बनीं।
सावित्री बाई फुले को ही भारत की पहली शिक्षिका होने का श्रेय जाता है।
फुले दंपति ने देश में कुल 18 स्कूल खोले थे। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके योगदान को सम्मानित भी किया। महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उन्हें समाज का विरोध भी झेलना पड़ा। कुछ लोगों ने उन पर गोबर भी फेंका लेकिन फुले दंपति ने अपना काम नहीं छोड़ा। उन्हें जान से मारने की भी कोशिश की गई।
ज्योतिराव फुले ने दलितों और वंचितों को न्याय दिलाने के लिए सत्यशोधक समाज की स्थापना की थी। समाज सुधार के इन अथक प्रयासों के चलते 1888 में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें महात्मा की उपाधि दी गई। 1890 को 63 साल की उम्र में उनका निधन हुआ था।
साथियों, महात्मा फुले कहते थे कि शिक्षा स्त्री और पुरुष दोनों के लिए समान रूप से आवश्यक है। आज उनके द्वारा किए गए महान कार्यों को याद करने का दिन है। महात्मा फुले के निधन को करीब 135 साल हो चुके हैं लेकिन उनके विचारों में अभी भी ताजगी बनी हुई है। महात्मा फुले एक मानवतावादी विचारक थे लेकिन साथ ही वे एक दूरदर्शी भी थे।