कर्म और जीवन पर आधारित संत कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे (हिंदी अर्थ सहित)
कबीर दास के दोहे अपनी सरलता, गहन अर्थ और आध्यात्मिक दर्शन के लिए प्रसिद्ध हैं। नीचे उनके 50 प्रसिद्ध दोहों को उनके अर्थ सहित प्रस्तुत किया गया है। ये दोहे भक्ति, ज्ञान, नैतिकता, सामाजिक समानता और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं। प्रत्येक दोहे के साथ उसका संक्षिप्त अर्थ दिया गया है ताकि समझ आसान हो।
कबीरा मन निर्मल भया, जैसे गंगा नीर।
पीछे-पीछे हरि फिरे, कहत कबीर कबीर।
👉 अर्थ: जब मन गंगा के जल जैसा निर्मल हो जाता है, तो ईश्वर स्वयं कबीर-कबीर कहकर पीछे फिरते हैं।
तन को जोगी सब करे, मन को बिरला कोय।
मन के मते न चलिए, मन के मते अनेक।
👉 अर्थ: तन को साधना सभी करते हैं, पर मन को साधना विरले ही करते हैं। मन के कई विचारों के पीछे मत भागो।
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।
👉 अर्थ: धीरे-धीरे सब कुछ होता है। जैसे माली सौ घड़े पानी डाले, फल तभी लगता है जब ऋतु आती है।
कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोय।
ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोय।
👉 अर्थ: जन्म के समय हम रोए और संसार हँसा। ऐसी करनी करो कि मरते समय हम हँसे और संसार रोए।
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूँगी तोय।
👉 अर्थ: मिट्टी कुम्हार से कहती है, तू मुझे क्यों रौंदता है? एक दिन मैं तुझे रौंदूँगी (मृत्यु के बाद मिट्टी में मिल जाओगे)।
कबीरा यह तन जायगा, कहाँ ठिकाना होय।
जो तन आए सत्संग में, सो तन सांचा होय।
👉 अर्थ: यह शरीर नष्ट हो जाएगा, इसका कोई ठिकाना नहीं। जो शरीर सत्संग में जाता है, वही सार्थक होता है।
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूड मरा, रहा किनारे बैठ।
👉 अर्थ: जो खोजने गए, उन्हें मिला, क्योंकि वे गहरे पानी में उतरे। मैं किनारे बैठा रहा, इसलिए डूब गया।
कबीरा प्रेम न चाखिया, चाखि न लिया रस।
अब पछताये होत क्या, चिड़िया चुग गई खेत।
👉 अर्थ: कबीर कहते हैं, तुमने प्रेम का स्वाद नहीं चखा। अब पछताने से क्या, जब चिड़िया खेत चुग गई।
सुख के सब साथी, दुख में ना कोय।
नारायण तुझ नारायण, दुख में सुमिरन होय।
👉 अर्थ: सुख में सभी साथी होते हैं, दुख में कोई नहीं। हे ईश्वर, दुख में ही तुम्हारी याद आती है।
कबीरा संगति साधु की, ज्यों गंधी की बात।
खरा खोटा छान ले, रह जाए सांचा साथ।
👉 अर्थ: साधु की संगति गंधी की दुकान जैसी है, जो अच्छे-बुरे को छानकर सच्चाई को साथ रखती है।