श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं : Krishna Janmashtami 2024

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं : Krishna Janmashtami 2023

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं

Krishna Janmashtami 2024


Krishna Janmashtami 2024

प्रत्येक वर्ष भारत में जन्माष्टमी का पर्व बहुत धूम धाम से मनाया जाता है। इस पर्व का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है। इस दिन को हिन्दू धर्म के भगवान् श्री कृष्णा के जन्म दिवस की ख़ुशी में मनाया जाता है।

इसे कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे –
कृष्णाष्टमी, गोकुलाष्टमी, अष्टमी रोहिणी, श्री कृष्ण जयंती, श्री कृष्णा जयंती आदि।

उन्होंने धरती पर मानव रूप में जन्म लिया था वे मानव जीवन को बचाने के लिए और मानव के दुखों को दूर कर सकते हैं।

इस पर्व पर बहुत से हिन्दू धर्म के अनुयाई व्रत रखते है ताकि वे भगवान् कृष्ण को प्रसन्न कर सके।

भगवान श्री कृष्ण का जन्म एक गूढ़ रहस्य है

हमारी प्राचीन कहानियों का सौंदर्य यह है कि वे कभी भी विशेष स्थान या विशेष समय पर नहीं बनाई गई हैं। रामायण या महाभारत प्राचीन काल में घटी घटनाएं मात्र नहीं हैं। ये हमारे जीवन में रोज घटती हैं। इन कहानियों का सार शाश्वत है।

श्री कृष्ण जन्म की कहानी का भी गूढ़ अर्थ है। इस कहानी में देवकी शरीर की प्रतीक हैं और वासुदेव जीवन शक्ति अर्थात प्राण के। जब शरीर प्राण धारण करता है, तो आनंद अर्थात श्री कृष्ण का जन्म होता है। लेकिन अहंकार (कंस) आनंद को खत्म करने का प्रयास करता है। यहाँ देवकी का भाई कंस यह दर्शाता है कि शरीर के साथ-साथ अहंकार का भी अस्तित्व होता है। एक प्रसन्न एवं आनंदचित्त व्यक्ति कभी किसी के लिए समस्याएँ नहीं खड़ी करता है, परन्तु भावनात्मक रूप से दुखी व्यक्ति अक्सर दूसरों को दुखी करते हैं, या उनकी राह में अवरोध पैदा करते हैं। जिस व्यक्ति को लगता है कि उसके साथ अन्याय हुआ है, वह अपने अहंकार के कारण दूसरों के साथ भी अन्यायपूर्ण व्यवहार करता है।

जहाँ आनंद और प्रेम है वहाँ अहंकार टिक नहीं सकता

अहंकार का सबसे बड़ा शत्रु आनंद है। जहाँ आनंद और प्रेम है वहाँ अहंकार टिक नहीं सकता, उसे झुकना ही पड़ता है। समाज में एक बहुत ही उच्च स्थान पर विराजमान व्यक्ति को भी अपने छोटे बच्चे के सामने झुकना पड़ जाता है। जब बच्चा बीमार हो, तो कितना भी मजबूत व्यक्ति हो, वह थोडा असहाय महसूस करने ही लगता है। प्रेम, सादगी और आनंद के साथ सामना होने पर अहंकार स्वतः ही आसानी से ओझल होने लगता है । श्री कृष्ण आनंद के प्रतीक हैं, सादगी के सार हैं और प्रेम के स्रोत हैं।

जब अहंकार बढ़ जाता है तब शरीर एक जेल की तरह हो जाता है

कंस के द्वारा देवकी और वासुदेव को कारावास में डालना इस बात का सूचक है कि जब अहंकार बढ जाता है तब शरीर एक जेल की तरह हो जाता है। जब श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, जेल के पहरेदार सो गये थे। यहाँ पहरेदार वह इन्द्रियाँ है जो अहंकार की रक्षा कर रही हैं क्योंकि जब वह जागता है तो बहिर्मुखी हो जाता है। जब यह इन्द्रियाँ अंतर्मुखी होती हैं तब हमारे भीतर आंतरिक आनंद का उदय होता है।

श्री कृष्ण को ‘माखन चोर’ क्यों कहा जाता है?

श्री कृष्ण माखनचोर के रूप में भी जाने जाते हैं। दूध पोषण का सार है और दूध का एक परिष्कृत रूप दही है। जब दही का मंथन होता है, तो मक्खन बनता है और ऊपर तैरता है। यह भारी नहीं बल्कि हल्का और पौष्टिक भी होता है। जब हमारी बुद्धि का मंथन होता है, तब यह मक्खन की तरह हो जाती है। तब मन में ज्ञान का उदय होता है, और व्यक्ति अपने स्व में स्थापित हो जाता है। दुनिया में रहकर भी वह अलिप्त रहता है, उसका मन दुनिया की बातों से / व्यवहार से निराश नहीं होता। माखनचोरी श्री कृष्ण प्रेम की महिमा के चित्रण का प्रतीक है। श्री कृष्ण का आकर्षण और कौशल इतना है कि वह सबसे संयमशील व्यक्ति का भी मन चुरा लेते हैं।

भगवान कृष्ण के सिर पर मोरपंख जिम्मेदारियों का है प्रतीक

एक राजा अपनी पूरी प्रजा के लिए ज़िम्मेदार होता है। वह ताज के रूप में इन जिम्मेदारियों का बोझ अपने सिर पर धारण करता है। लेकिन श्री कृष्ण अपनी सभी जिम्मेदारी बड़ी सहजता से पूरी करते हैं – एक खेल की तरह। जैसे किसी माँ को अपने बच्चों की देखभाल कभी बोझ नहीं लगती। श्री कृष्ण को भी अपनी जिम्मेदारियां बोझ नहीं लगतीं हैं और वे विविध रंगों भरी इन जिम्मेदारियों को बड़ी सहजता से एक मोरपंख (जो कि अत्यंत हल्का भी होता है) के रूप में अपने मुकुट पर धारण किये हुए हैं।

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