प्रसिद्ध चैतुरगढ़ का किला छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में आता है। इस किले को लाफागढ़ किला नाम से भी जाना जाता है। इस किले को प्राकृतिक महत्व तो है ही लेकिन साथ ही इस किले को वास्तुकला की दृष्टि से देखा जाए तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
चैतुरगढ़ का किला (कोरबा / छत्तीसगढ़)
Chaiturgarh Fort (Korba / Chhattisgarh)
चैतुरगढ़ या लाफागढ़ कोरबा – बिलासपुर रोड पर कटघोरा तहसील, कोरबा जिला , छत्तीसगढ़ , भारत से लगभग 51 किलोमीटर (32 मील) दूर एक किला है । यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित स्मारक है। चैतुरगढ़ छत्तीसगढ़ के 36 किलों में से एक है। चैतुरगढ़ कोरबा से लगभग 70 किलोमीटर (43 मील) और पाली शहर से 21 किलोमीटर (13 मील) दूर स्थित है।
चैतुरगढ़ (जिसे लाफागढ़ के नाम से भी जाना जाता है ) एक पहाड़ी की चोटी पर 3,060 फीट (930 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है। यह मजबूत प्राकृतिक दीवारों द्वारा संरक्षित है और इसे सबसे मजबूत प्राकृतिक किलों में से एक माना जाता है। चूंकि यह मजबूत प्राकृतिक दीवारों से सुरक्षित है, इसलिए केवल कुछ स्थानों पर ही दीवारें बनाई गई हैं। किले में तीन मुख्य प्रवेश द्वार हैं जिनके नाम मेनका , हुमकारा और सिंहद्वार हैं ।
पहाड़ी की चोटी पर लगभग 5 वर्ग किलोमीटर (1.9 वर्ग मील) का मैदानी क्षेत्र है जहाँ पाँच तालाब हैं। इनमें से तीन तालाबों में साल भर पानी रहता है। यहां कई तरह के जंगली जानवर और पक्षी पाए जाते हैं।
चैतुरगढ़ किले का इतिहास (Chaiturgarh fort History)
ऐतिहासिक दृष्टि से चैतुरगढ़ किले को बहुत ही महत्व प्राप्त है। पुरातत्वविद इस किले को एक प्राकृतिक और मजबूत किला मानते है। कुछ का ऐसा भी मानना है मध्य प्रान्त और बेरार में मिले कुछ शिलालेख बताते है यह किला 933 कलचुरी के ज़माने का है और उस वक्त कलचुरी राजा का शासन था।
ऐसा माना जाता है की यहाँ का राजा हैहाया परिवार का था और उसे अठरा लड़के थे। उस राजा के लडको में से एक का नाम कलिंगा था और उस कलिंगा का लड़का कमला राजा था। कमला राजा ने तुम्मना पर कई सालो तक शासन किया था। लेकिन कमला राजा को रत्नराजा 1 ने हराया था।
लेकिन रत्नराजा के बाद पृथ्वीदेव ने शासन किया। ऐसा कहा जाता है की इस किले का निर्माण राजा पृथ्वीदेव ने करवाया था। भारत का पुरातत्व विभाग इस किले की देखभाल का काम देखता है।
चैतुरगढ़ किले की वास्तुकला (Chaiturgarh fort Architecture)
प्रसिद्ध महिषासुर मर्दिनी मंदिर भी यहीपर है। यहाँ के मंदिर में महिषासुर मर्दिनी की 12 हातोवाली मूर्ति स्थापित की गयी है। इस मंदिर से 3 किमी की दुरी पर शंकर गुफा है। यह गुफा एक सुरंग की तरह है जो की 25 फूट की है। इस गुफा का आकार बहुत छोटा होने के कारण इसमें से रेंगते हुए ही जाना पड़ता है।
इस चैतुरगढ़ या लाफागढ़ किले की दीवारे एक तरह से ने ना होने के कारण हमें इसकी दीवारे कई जगह पर छोटी तो कई जगह पर मोटी देखने को मिलती है। किले के प्रवेश द्वार बहुत ही खुबसूरत तरीक़े से बनाया गया है। इसमें कई सारे स्तंभ और मुर्तिया भी देखने को मिलती है।
यहाँ पर एक बहुत बड़ी गुबंद है जो मजबूत स्थम्भो पर बनायीं गयी है। इस गुबंद को आधार देने के लिए पाच स्तंभ बनवाये गए थे।
किले के बाजु में जो पहाड़ी है उसके आजूबाजू में पाच तालाब थे जो की करीब 5 वर्ग किमी में फैले हुए थे। उन पाच तालाबो में से तीनतालाब साल भर पानी से भरे रहते थे।
किले को मेनका, हुम्कारा और सिंहद्वार नामके तीन सबसे अहम द्वार माने जाते है।
बहुत सारे किले को एक ही नाम दिया जाता है। लेकिन चैतुरगढ़ के किले को एक नहीं बल्कि दो नाम दिए गए है। और यही इस किले की खासियत है। इस किले को चैतुरगढ़ के साथ साथ लाफागढ़ किला नाम से भी जाना जाता है। सबसे बड़ी और चौकाने वाली बात यह है कि यह किला इतना उचाई पर होने के बाद इसके सबसे ऊपर के इलाके में एक नहीं बल्की पुरे पाच तालाब है और उनमे से ज्यादातर तालाबो में साल भर पानी भरा रहता है।