Happy Father’s Day: ‘
मेरी ताकत…मेरी हिम्मत…मेरी पहचान हैं पिता
फादर्स डे सर्वप्रथम 19 जून 1910 को वाशिंगटन में मनाया गया। साल 2019 में फादर्स-डे के 109 साल पूरे हो गए।
फादर्स डे पिताओं के सम्मान में एक व्यापक रूप से मनाया जाने वाला पर्व हैं जिसमे पितृत्व (फादरहुड), पितृत्व-बंधन तथा समाज में पिताओं के प्रभाव को समारोह पूर्वक मनाया जाता है। अनेक देशों में इसे जून के तीसरे रविवार, तथा बाकी देशों में अन्य दिन मनाया जाता है। यह माता के सम्मान हेतु मनाये जाने वाले मदर्स डे (मातृ-दिवस) का पूरक है।
18 जून 2023 को फादर्स डे है. फादर्स डे पिता के प्यार, समर्पण और त्याग के लिए उन्हें सम्मान देने का दिन है। फादर्स डे की शुरुआत कैसे हुई, कब हुई। आइए जानते हैं फादर्स डे का इतिहास।
फादर्स डे आज, जानें इतिहास और शास्त्रों में बताया पिता को सम्मान देने का सही तरीका
18 जून 2023 को फादर्स डे है। हर साल पूरी दुनिया में जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाया जाता है। फादर्स डे पिता के प्यार, समर्पण और त्याग के लिए उन्हें सम्मान देने का दिन है। महाभारत में यक्ष प्रश्न के जवाब में युधिष्ठिर ने कहा था- आकाश से ऊंचा पिता है।
पुराणों में जिक्र मिलता है-
सर्वदेव मय: पिता।
यानी सभी देवता पिता में हैं।
पिता ही हमें बनाते हैं, सिखाते हैं और हमारा निर्माण करते हैं। पिता का आभार व्यक्त करने के लिए फादर्स डे मनाया जाता है लेकिन इसकी फादर्स डे की शुरुआत कैसे हुई, कब हुई। आइए जानते हैं फादर्स डे का इतिहास।
फादर्स डे का इतिहास (Fathers Day History)
पहली बार फादर्स डे 19 जून 1910 को अमेरिका में अमेरिका निवासी सोनोरा स्मार्ट डोड नाम की महिला ने अपने पिता को सम्मानित करने के लिए फादर्स डे मनाना था। सोनोरा के पिता विलियम्स स्मार्ट ने पत्नी की मृत्यु के बाद 6 बच्चों का पालन पोषण किया। पिता के समर्पण, त्याग के लिए वह उन्हें सम्मान देना चाहती थी, इसलिए जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाया जाने लगा।
फादर्स डे को सम्मान देने का सही तरीका
ग्रंथों में लिखा है- पिता को सही मायने में सम्मान और खुश करने के लिए क्या करना चाहिए।
सर्वत्र जयमन्विच्छेत्, पुत्रादिच्छेत् पराभवम्।
पिता चाहते हैं कि उनके सारे कीर्तिमान संतान तोड़ दें। ऐसे में उन्हें सबसे ज्यादा खुशी तब मिलती है जब संतान पिता का सिर गर्व से ऊंचा करे। पिता की दी हुई सीख और मार्गदर्शन को जीवन में उतार लिया जाए तो संतान संस्कारी और सफल हो सकती है।
सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमय: पिता।
मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत्।।
अर्थात – माता सर्वतीर्थ मयी और पिता सम्पूर्ण देवताओं का स्वरूप हैं इसलिए सभी प्रकार से यत्नपूर्वक माता-पिता का पूजन करना चाहिए। जो माता-पिता की प्रदक्षिणा करता है, उसके द्वारा सातों द्वीपों से युक्त पृथ्वी की परिक्रमा हो जाती है।