वेद, प्राचीन भारत के पवित्र साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं । वेद, विश्व के सबसे प्राचीन साहित्य भी हैं। भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रम धर्म के, मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ है।
‘वेद’ शब्द संस्कृत भाषा के वेद् ज्ञान धातु से बना है। इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ ‘ज्ञान’ है। इसी धातु से ‘विदित’ (जाना हुआ), ‘विद्या’ (ज्ञान), ‘विद्वान’ (ज्ञानी) जैसे शब्द आए हैं।
वेद सबसे प्राचीन पवित्र ग्रंथों में से हैं। संहिता की तारीख लगभग 1700-1100 ईसा पूर्व, और “वेदांग” ग्रंथों के साथ-साथ संहिताओं की प्रतिदेयता कुछ विद्वान वैदिक काल की अवधि 1500-600 ईसा पूर्व मानते हैं तो कुछ इससे भी अधिक प्राचीन मानते हैं। जिसके परिणामस्वरूप एक वैदिक अवधि होती है, जो 1000 ईसा पूर्व से लेकर 200 ई.पूर्व तक है।
कुछ विद्वान इन्हे ताम्र पाषाण काल (4000 ईसा पूर्व) का मनते हैं। वेदों के बारे में यह मान्यता भी प्रचलित है कि वेद सृष्टि के आरंभ से हैं और परमात्मा द्वारा मानव मात्र के कल्याण के लिए दिए गए हैं। वेदों में किसी भी मत, पंथ या सम्प्रदाय का उल्लेख न होना यह दर्शाता है कि वेद विश्व में सर्वाधिक प्राचीनतम साहित्य है। वेदों की प्रकृति विज्ञानवादी होने के कारण पश्चिमी जगत में इनका डंका बज रहा है।
आज ‘चतुर्वेद’ के रूप में ज्ञात इन ग्रंथों का विवरण इस प्रकार हैं :-
ऋग्वेद (Rigveda)
यह ऋतुओं का संग्रह है। ऋग्वेद 10 डलों में विभाजित है। इसमें देवताओं की स्तुति में 1028 श्लोक हैं, जिसमें 11 बालाखिल्य श्लोक हैं। ऋग्वेद में 10462 मन्त्रों का संकलन है।
ऋग्वेद का पहला तथा 10वां मंडल क्षेपक माना जाता है। नौवें मंडल में सोम की चर्चा है। प्रसिद्ध गायत्री मन्त्र ऋग्वेद के तीसरे मंडल से लिया गया है। जिसमें सवितृ नामक देवता को सम्बोधित किया गया है।
आठवें मंडल की हस्तलिखित ऋचाओं को खिल कहा जाता है। सरस्वती ऋग्वेद में एक पवित्र नदी के रूप में उल्लिखित है। सरस्वती के परवाह-क्षेत्र को देवकृत योनि कहा गया है।
सामवेद (Samaveda)
यह गीति-रूप मन्त्रों का संग्रह है और इसके अधिकांश गीत ऋग्वेद से लिए गए है। सामवेद से संबंधित श्लोक तथा मन्त्रों का गायन करने वाले पुरोहित उद्गात्री कहलाते थे।
सामवेद का संबंध संगीत से है तथा इसमें संगीत के विविध पक्षों का उल्लेख हुआ है। इसमें कुल 1549 श्लोक है जिनमें से 75 को छोड़कर सभी ऋग्वेद से लिए गए हैं। सामवेद में मन्त्रों की संख्या 1810 है।
इसकी तीन शाखाएं हैं – कौथम, जैमिनीय एवं राणायनीय (Kautham, Jaiminiya and Ranayaniya.)।
यजुर्वेद (Yajurveda)
इसमें यज्ञानुष्ठान के लिए विनियोग वाक्यों का समावेश है। यजुर्वेद में अनुष्ठानों तथा कर्मकांडों में प्रयुक्त होने वाले श्लोकों तथा मंत्रों का संग्रह है। इसका गायन करने वाले पुरोहित अध्वर्य कहलाते थे।
यजुर्वेद गद्य तथा पद्य दोनों में रचित है। इसके दो पाठान्तर हैं – कृष्ण यजुर्वेद एवं शुक्ल यजुर्वेद। यजुर्वेद में कृषि तथा सिंचाई की प्रविधियों की चर्चा है।
अथर्ववेद (Atharvaveda)
यह तंत्र-मन्त्रों का संग्रह है। अर्थर्ववेद की रचना अथर्वा ऋषि ने की थी। अर्थर्ववेद की दो शाखाएं हैं – शौनक एवं पिप्लाद (Saunaka and Piplad)।
अर्थर्ववेद के अधिकांश मन्त्रों का संबंध तंत्र-मंत्र या जादू-टोना से है। रोग निवारण औषधियों की चर्चा भी इसमें मिलती है। अर्थर्ववेद के मन्त्रों को भारतीय विज्ञान का आधार भी माना जाता है।
अर्थर्ववेद में सभा तथा समिति को प्रजापति की दो पुत्रियां कहा गया है। सर्वोच्च शासक को अर्थर्ववेद में एकराट कहा गया है। सूर्य का वर्णन एक ब्राह्मण विद्यार्थी के रूप में अर्थर्ववेद में हुआ है।