हल ही में किसे “सुप्रीम कोर्ट कानूनी सेवा समिति” का अध्यक्ष नियुक्त किया गया ?
हल ही में जस्टिस बी. आर. गवई को “सुप्रीम कोर्ट कानूनी सेवा समिति” का अध्यक्ष नियुक्त किया गया
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस बी. आर. गवई को सर्वोच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति (Supreme Court Legal Services Committee – SCLSC) के अध्यक्ष के रूप में नामित किया गया है।
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई को सर्वोच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति (Supreme Court Legal Services Committee – SCLSC) के अध्यक्ष के रूप में नामित किया गया है।
सर्वोच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति क्या है?
- पृष्ठभूमि:
- विधिक सेवा समिति का विचार सबसे पहले 1950 के दशक में आया था, वर्ष 1980 में तत्कालीन SC के न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती की अध्यक्षता में राष्ट्रीय स्तर पर एक समिति की स्थापना की गई थी।
- विधिक सेवा समिति को लागू करने वाली समिति ने पूरे भारत में विधिक सहायता गतिविधियों की निगरानी शुरू कर दी।
- परिचय:
- SCLSC का गठन शीर्ष अदालत के अधिकार क्षेत्र के तहत आने वाले मामलों में “समाज के कमज़ोर वर्गों को मुफ्त और सक्षम कानूनी सेवाएँ” प्रदान करने के लिये विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 3A के तहत किया गया था।
- अधिनियम की धारा 3A में कहा गया है कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority – NALSA) इस समिति का गठन करेगी।
- इसमें एक सर्वोच्च न्यायालय (SC) का वर्तमान न्यायाधीश, जो अध्यक्ष है, के साथ-साथ केंद्र द्वारा निर्धारित अनुभव और योग्यता रखने वाले अन्य सदस्य शामिल होते हैं। अध्यक्ष और अन्य सदस्यों दोनों को भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India – CJI) द्वारा नामित किया जाएगा।
- इसके अलावा, CJI समिति में सचिव की नियुक्ति कर सकते हैं।
- सदस्य:
- SCLSC में एक अध्यक्ष तथा CJI द्वारा नामित नौ सदस्य शामिल होते हैं। समिति CJI के परामर्श से केंद्र द्वारा निर्धारित अधिकारियों तथा अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति कर सकती है।
- इसके अतिरिक्त NALSA नियम, 1995 के नियम 10 में SCLSC सदस्यों की संख्या, अनुभव तथा अर्हताएँ शामिल हैं।
- 1987 अधिनियम की धारा 27 के तहत केंद्र को अधिनियम के उपबंधो को कार्यान्वित करने के लिये अधिसूचना द्वारा CJI के परामर्श से नियम बनाने का अधिकार है।
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 क्या है?
- परिचय:
- वर्ष 1987 में विधिक सहायता कार्यक्रमों को वैधानिक आधार प्रदान करने के लिये विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम क्रियान्वित किया गया था। इसका उद्देश्य महिलाओं, बच्चों, SC (अनुसूचित जाति)/ST (अनुसूचित जनजाति) तथा EWS (आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग) श्रेणियों, औद्योगिक श्रमिकों, दिव्यांगजनों सहित पात्र समूहों को निशुल्क व सक्षम विधिक सेवाएँ प्रदान करना है।
- NALSA:
- इस अधिनियम के तहत विधिक सहायता कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की निगरानी व मूल्यांकन करने तथा विधिक सेवाएँ उपलब्ध कराने हेतु नीतियों के निर्माण के लिये वर्ष 1995 में NALSA का गठन किया गया था।
- विधिक सहायता तथा सहयोग प्रदान करने के लिये अधिनियम के तहत एक राष्ट्रव्यापी नेटवर्क की परिकल्पना की गई।
- यह विधिक सहायता योजनाओं तथा कार्यक्रमों को कार्यान्वित करने के लिये राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों एवं गैर-सरकारी संगठनों को निधि व अनुदान भी उपलब्ध कराता है।
- राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण:
- इसके बाद, हर राज्य में NALSA की नीतियों और निर्देशों को लागू करने, लोगों को मुफ्त कानूनी सेवाएँ प्रदान करने एवं लोक अदालतों का संचालन करने के लिये राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (SLSA) की स्थापना की गई।
- SLSA का नेतृत्व संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश करते हैं और इसके कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में वरिष्ठ HC न्यायाधीश शामिल होते हैं। जबकि HC मुख्य न्यायाधीश SLSA के संरक्षक-प्रमुख हैं, CJI, NALSA के संरक्षक-प्रमुख हैं।
- ज़िला कानूनी सेवा प्राधिकरण:
- इसी प्रकार, ज़िलों और अधिकांश तालुकों में ज़िला कानूनी सेवा प्राधिकरण (District Legal Services Authorities- DLSA) तथा तालुक कानूनी सेवा समितियाँ स्थापित की गईं। प्रत्येक ज़िले में ज़िला न्यायालय परिसर में स्थित, प्रत्येक DLSA की अध्यक्षता संबंधित ज़िले के ज़िला न्यायाधीश द्वारा की जाती है।
- तालुका या उप-विभागीय कानूनी सेवा समितियों का नेतृत्व एक वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश करता है। सामूहिक रूप से ये निकाय अन्य कार्यों के साथ-साथ कानूनी जागरूकता शिविर आयोजित करते हैं, मुफ्त कानूनी सेवाएँ प्रदान करते हैं और प्रामाणित आदेश प्रतियाँ एवं अन्य कानूनी दस्तावेज़ों की आपूर्ति प्राप्त करते हैं।
वे कौन से संवैधानिक प्रावधान हैं जो भारत में कानूनी सेवाओं के प्रावधान को अनिवार्य बनाते हैं?
- भारतीय संविधान के कई प्रावधानों में कानूनी सेवाएँ प्रदान करने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है। अनुच्छेद 39A में कहा गया है, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि कानूनी प्रणाली का संचालन समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देगा और विशेष रूप से, उपयुक्त कानून या योजनाओं या किसी अन्य तरीके से मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करेगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी नागरिक को आर्थिक या अन्य विकलांगताओं के कारण न्याय हासिल करने के अवसरों से वंचित नहीं किया जाए।
- इसके अलावा, अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 22(1) (गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित होने का अधिकार) भी राज्य के लिये विधि के समक्ष समानता तथा समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देने वाली विधिक प्रणाली सुनिश्चित करना अनिवार्य बनाता है।
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