Whom did the people of Indus Valley Civilization worship?
सिंधु घाटी की सभ्यता के लोग किसकी पूजा करते थे?
सिंधु घाटी की सभ्यता के लोग पशुपति की पूजा करते थे।
सिंधु घाटी सभ्यता का काल खंड
सिंधु घाटी सभ्यता के कालखंड के निर्धारण को लेकर विभिन्न विद्वानों के बीच गंभीर मतभेद हैं। विद्वानों ने सिंधु घाटी सभ्यता को तीन चरणों में विभक्त किया है, ये हैं-
- प्रारंभिक हड़प्पा संस्कृति अथवा प्राक् हड़प्पा संस्कृति : 3200 ईसा पूर्व से 2600 ईसा पूर्व
- हड़प्पा सभ्यता अथवा परिपक्व हड़प्पा सभ्यता : 2600 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व
- उत्तरवर्ती हड़प्पा संस्कृति अथवा परवर्ती हड़प्पा संस्कृति : 1900 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व
सिंधु घाटी सभ्यता का क्षेत्रीय विस्तार
- हड़प्पा सभ्यता भारत भूमि पर लगभग 13 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में त्रिभुजाकार स्वरूप में फैली हुई थी।
- यह उत्तर में ‘मांडा’ (जम्मू कश्मीर) तक, दक्षिण में ‘दैमाबाद’ (महाराष्ट्र) तक, पूर्व में ‘आलमगीरपुर’ (उत्तरप्रदेश) तक और पश्चिम में ‘सुत्कागेंडोर’ (पाकिस्तान) तक फैली हुई थी।
- यह सभ्यता सौराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश इत्यादि क्षेत्रों में भी विस्तृत थी।
सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित प्रमुख स्थल
- हड़प्पा :
- यह स्थल वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोंटगोमरी जिले में स्थित है। यहाँ सबसे पहले उत्खनन कार्य किया गया था। यह रावी नदी के तट पर स्थित है।
- सबसे पहले 1826 ईस्वी में एक अंग्रेज पर्यटक चार्ल्स मेसन ने हड़प्पा के टीले के विषय में जानकारी दी थी। इसके बाद हड़प्पा स्थल की विधिवत खुदाई 1921 ईस्वी में श्री दयाराम साहनी के नेतृत्व में आरंभ हुई थी।
- इस स्थल पर आबादी वाले क्षेत्र के दक्षिणी भाग में एक कब्रिस्तान प्राप्त हुआ है, जिसे विद्वानों ने ‘कब्रिस्तान एच’ का नाम दिया है।
- हड़प्पा से हमें एक विशाल अन्नागार के साक्ष्य भी मिले हैं। यह सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में प्राप्त हुई तमाम संरचनाओं में दूसरी सबसे बड़ी संरचना है। इस अन्नागार में 6-6 की 2 पंक्तियों में कुल 12 विशाल कक्ष निर्मित पाए गए हैं।
- हड़प्पा से हमें एक पीतल की इक्का गाड़ी मिली है। इसी स्थल पर स्त्री के गर्भ से निकलते हुए पौधे वाली एक मृण्मूर्ति भी मिली है।
- समूची हड़प्पा सभ्यता में हमें सबसे अधिक अभिलेख युक्त मुहरें यहीं से ही प्राप्त हुई हैं।
- मोहनजोदड़ो :
- मोहनजोदड़ो का सिंधी भाषा में शाब्दिक अर्थ होता है- ‘मृतकों का टीला’। यह वर्तमान पाकिस्तान में सिंध के लरकाना जिले में स्थित है। यह स्थल सिंधु नदी के तट पर स्थित है। इस स्थल पर उत्खनन कार्य 1922 ईस्वी में श्री राखाल दास बनर्जी के नेतृत्व में हुआ था।
- इस स्थल से हमें एक विशाल स्नानागार के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। यहाँ सड़कों का जाल बिछा हुआ था। यहाँ पर सड़कें ग्रिड प्रारूप में बनी हुई थीं। यहाँ से मिली सबसे बड़ी इमारत विशाल अन्नागार है।
- सर्वाधिक मुहरें मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई हैं। उल्लेखनीय है की हड़प्पा स्थल से सर्वाधिक अभिलेख युक्त मुहरें प्राप्त हुई हैं।
- यहाँ से प्राप्त हुए अन्य प्रमुख अवशेषों में शामिल हैं- कांसे की नर्तकी की मूर्ति, मुद्रा पर अंकित पशुपति नाथ की मूर्ति, सूती कपड़ा, अलंकृत दाढ़ी वाला पुजारी, इत्यादि।
- चन्हूदड़ो :
- चन्हूदड़ो वर्तमान में पाकिस्तान में सिंधु नदी के तट पर स्थित है। यहाँ पर उत्खनन कार्य 1935 ईस्वी में अर्नेस्ट मैके के नेतृत्व में किया गया था।
- यहाँ पर शहरीकरण का अभाव था। इस स्थल से विभिन्न प्रकार के मनके, उपकरण, मुहरें इत्यादि प्राप्त हुई हैं। इस आधार पर विद्वानों द्वारा अनुमान लगाया जाता है की चन्हूदड़ो में मनके निर्माण का कार्य होता था। इसीलिए इस स्थल को सिंधु घाटी सभ्यता का औद्योगिक केंद्र भी माना जाता है।
- चन्हूदड़ो सिंधु घाटी सभ्यता का एक मात्र ऐसा स्थल है, जहाँ से हमें वक्राकार ईटों के साक्ष्य प्राप्त होते हैं।
- कालीबंगा :
- कालीबंगा स्थल वर्तमान राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में स्थित है। यह प्राचीन ‘सरस्वती नदी’ के तट पर स्थित था। इस स्थल की खोज 1953 ईस्वी में अमलानंद घोष द्वारा की गई थी।
- कालीबंगा नामक स्थल से हमें जुते हुए खेत, एक साथ दो फसलों की बुवाई, अग्नि कुंड के साक्ष्य मिले हैं। यहाँ से जल निकासी प्रणाली के साक्ष्य नहीं मिलते हैं।
- यहाँ से बेलनाकर मुहरों, अलंकृत ईंटों के साक्ष्य मिले हैं।
- लोथल :
- लोथल वर्तमान में गुजरात के अहमदाबाद में भोगवा नदी के तट पर स्थित है। यह स्थल खंभात की खाड़ी के अत्यंत निकट स्थित है।
- इस स्थल की खोज 1957 ईस्वी में श्री एस. आर. राव द्वारा की गई थी। सिंधु घाटी सभ्यता का यह स्थल एक प्रमुख बंदरगाह स्थल था।
- सिंधु घाटी सभ्यता के इस बंदरगाह स्थल लोथल में एक विशाल गोदी बाड़ा मिला है।
- लोथल से धान व बाजरे, दोनों के साक्ष्य मिलते हैं। इस बंदरगाह स्थल से हमें तीन युगल समाधियों के साक्ष्य भी प्राप्त होते हैं।
- धौलावीरा :
- धौलावीरा वर्तमान गुजरात के कच्छ जिले की भचाऊ तहसील में स्थित है। यह सिंधु घाटी सभ्यता कालीन स्थल मानहर व मानसर नदियों के पास स्थित है।
- धौलावीरा में अन्य सिंधु घाटी सभ्यता कालीन स्थलों के विपरीत नगर का विभाजन तीन हिस्सों में मिलता है। सिंधु घाटी सभ्यता कालीन अन्य नगरों का विभाजन दो हिस्सों में किया गया था।
- धौलावीरा में हमें बाँध अथवा कृत्रिम जलाशय के साक्ष्य मिले हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि इस नगर में जल प्रबंधन की उत्कृष्ट व्यवस्था मौजूद थी।
इनके अलावा, अन्य स्थलों में राखीगढ़ी, संघोल, रोपड़, कोटदीजी इत्यादि शामिल हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता में नगर नियोजन
- सड़कें समकोण पर काटती थीं और इस प्रकार से नगर योजना एक ग्रिड प्रारूप अर्थात् जाल पद्धति पर आधारित थी।
- सिंधु घाटी सभ्यता में जल निकासी प्रणाली भी अपना विशेष महत्व रखती है। इस दौरान शहर में नालियों का जाल बिछा हुआ था।
- भवन निर्माण के लिए पक्की ईंटों का प्रयोग किया जाता था। सिंधु घाटी सभ्यता कालीन प्रत्येक घर में एक रसोई घर और एक स्नानागार होता था।
- नगर को दो हिस्सों में विभाजित किया जाता था। एक ‘पश्चिमी टीला’ होता था, जिसे ‘दुर्ग’ कहते थे, जबकि दूसरा हिस्सा ‘पूर्वी टीला’ होता था, जिसे ‘निचला नगर’ कहते थे।
सिंधु सभ्यता कालीन लोगों की सामाजिक स्थिति
- यह समाज मातृसत्तात्मक रहा होगा। इतिहासकारों के अनुसार, समाज चार वर्गों में विभक्त था- विद्वान, योद्धा, श्रमिक और व्यापारी।
- ये लोग शाकाहार और माँसाहार, दोनों ही तरह के भोजन का प्रयोग करते थे। ये ऊनी और सूती, दोनों ही प्रकार के वस्त्रों का उपयोग करते थे। पुरुष और महिलाएँ, दोनों ही आभूषण पहनते थे।
- सिंधु घाटी सभ्यता के लोग शांतिप्रिय लोग थे। यहाँ से तलवार, ढाल, शिरस्त्राण, कवच इत्यादि के साक्ष्य नहीं मिले हैं।
सिंधु सभ्यता कालीन लोगों की आर्थिक स्थिति
- ये लोग विभिन्न कृषि वस्तुओं, जैसे- जौ, चावल, गेहूँ, मटर, सरसों, राई, तिल, तरबूज, खजूर इत्यादि का उपयोग करते थे।
- सिंधु घाटी सभ्यता के स्थलों से हमें जुते हुए खेत के साक्ष्य, एक साथ दो फसलें बोए जाने के साक्ष्य इत्यादि प्राप्त हुए हैं।
- हड़प्पा सभ्यता एक कांस्य युगीन सभ्यता थी। कांसा बनाने के लिए तांबे और टिन को क्रमशः 9:1 के अनुपात में मिलाया जाता था। हड़प्पा सभ्यता के लोग लोहे के प्रयोग से परिचित नहीं थे और संभवतः उन्हें तलवार के विषय में भी जानकारी नहीं थी।
- इस दौरान आंतरिक और बाह्य दोनों ही व्यापार समृद्ध अवस्था में थे। सुमेरियन सभ्यता के लेखों से ज्ञात होता है कि विदेशों में सिंधु सभ्यता के व्यापारियों को मेलुहा के नाम से जाना जाता था।
- लोथल नामक सिंधु घाटी सभ्यता कालीन स्थल से हमें फारस की मुहरें प्राप्त होती हैं तथा कालीबंगा से बेलनाकर मुहरें प्राप्त होती हैं। ये सभी प्रमाण सिंधु घाटी सभ्यता के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की ओर इशारा करते हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता का पतन
- सिंधु घाटी सभ्यता का पतन कैसे हुआ, इसके संबंध में विभिन्न विद्वानों के अनेक मत हैं। लेकिन उनमें से कोई भी मत सर्वसम्मति से स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि ये सभी मत सिर्फ अनुमानों के आधार पर दिए गए हैं।
- गार्डन चाइल्ड, मॉर्टिमर व्हीलर, पिग्गट महोदय जैसे विद्वानों ने सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का कारण आर्य आक्रमण को माना था, लेकिन विभिन्न शोधों के आधार पर अब इस मत का खंडन किया जा चुका है और यह सिद्ध किया जा चुका है कि आर्य बाहरी व्यक्ति नहीं थे, बल्कि वे भारत के ही मूल निवासी थे। इसलिए आर्यों के आक्रमण के कारण सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के मत को वैध नहीं माना जा सकता है।
- इसके अलावा, विभिन्न विद्वान जलवायु परिवर्तन, बाढ़, सूखा, प्राकृतिक आपदा, पारिस्थितिकी असंतुलन, प्रशासनिक शिथिलता इत्यादि को सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के लिए उत्तरदायी कारक मानते हैं।
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